ज़िन्दगी के सफर में अब नहीं बिछड़ना है हमें क्यू की में सांसे और तुम धड़कन बन गई हो एकदूजे के बिना अब ज़... ज़िन्दगी के सफर में अब नहीं बिछड़ना है हमें क्यू की में सांसे और तुम धड़कन बन गई हो...
अचंभित राम को यह सामान्य नहीं लग रहा था अचंभित राम को यह सामान्य नहीं लग रहा था
अपनी अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति के लिए अपने बच्चों का बचपन छीनते पालकों पर व्यंग्य अपनी अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति के लिए अपने बच्चों का बचपन छीनते पालकों पर व्यंग्य...
आतिशे-संग आतिशे-संग
उष्मा सभर हाथ ने दिल में अपनापन जगाया तो आँखें हंस पड़ी। उष्मा सभर हाथ ने दिल में अपनापन जगाया तो आँखें हंस पड़ी।
मिटा दे बरसो की प्यास, रस दे मुझ नीरस को। मिटा दे बरसो की प्यास, रस दे मुझ नीरस को।